Kumawat Jaati Maru Kumbar Ka Itihaas aur Kuldevi – Full Information

!! श्रीगणेशाय नमः!!

कुमावत – मारु कुंबार जाति का इतिहास और कुलदेवी

कुमावत जाति के आज के युवाओं द्वारा अपनी जाति के इतिहास या उनकी कुलदेवी कौन है? ये जानने के लिए गूगल में सर्च की जा रही है

लेकिन सही जानकारी उन्हें नहीं मिल पा रही है ऐसा मैंने देखा है !

मैं स्वयं कुमावत हूँ और मेरे पास राव हनुमानदान वल्द केसुदानजी रावचण्डीसा, पोस्ट- लाम्बिया, तहसील -जेतारण , जिला -पाली , राजस्थान द्वारा सम्वत 2031 में लिखित पुस्तक है ! अभी सम्वत 2078 चल रही है! अर्थात ये पुस्तक 47 वर्ष पुरानी है ! राव हनुमानदान के पूर्वजों के पास कुमावतों की वंशावली की प्राचीन पोथियाँ, बहियाँ है ! बोलचाल की भाषा में इन रावों को कई जगह बहीभाट भी कहा जाता है! इनके द्वारा लिखी पुस्तक के अनुसार कुमावत जाति के संक्षिप्त इतिहास की जानकारी आपको देने की कोशिश कर रहा हूँ जो कि इस प्रकार है –

संत श्रीशरणदासजी के शिष्य संत श्रीगरवाजी महाराज थे जो कि भाटी राजपूत कुल के थे ! श्रीगरवाजी महाराज वचनसिद्ध संत थे और उस समय के उस क्षेत्र के सभी राजपूत उनके अनुयायी थे एवं सत्संग में शामिल होते थे! राजपूतों में विधवा -विवाह का चलन नहीं था ! नि:संतान विधवाओं का पुनर्विवाह अर्थात नाता कर उनके जीवन में खुशियां भरने का चिंतन उनके मन में चला और राजपूतों के जिन घरों में नि:संतान विधवायें थी उनका पुनर्विवाह नाता करने का उपदेश दिया !

6 राजपूत जाति वालों ने संत श्रीगरवाजी महाराज को पहले ही वचन दे दिया था कि गुरुदेव आप जो उपदेश देंगे उसका हम पालन करेंगे । सर्वप्रथम इन 6 राजपूत जातियों से 12 गौत्र बने थे जोकि इस प्रकार है –

भाटी राजपूत से- बोरावड़ , मंगलराव, भूटिया, पोड़, लीमा। पंवार राजपूत से- दुगट, रसीयड। पड़िहार राजपूत से – मेरथा। चौहान राजपूत से – टाक । राठौड़ राजपूत से – कालोड़, कीता। गोहल राजपूत से – सुडा।

कई राजपूत जातियां इसके पक्ष में आई ! जिन जिन राजपूत जातियों ने विधवा विवाह, नाता करना स्वीकार किया उनकी एक अलग जाति बनाने का प्रस्ताव आया और उस समय उनकी राजपूतों से अलग जाति शकुन लेकर बनाई गई!

पुस्तक में लिखा है कि संत श्रीगरवाजी महाराज सूर्योदय के समय उन राजपूतों को साथ लेकर अपने डेरे से कुछ दूरी तक आगे बढ़े, उस समय एक कन्या पानी से भरा घड़ा सिर पर रखे हुए सामने मिली! वह कन्या पीपल सींचने जा रही थी , वैशाख मास में कुमारी कन्याओं द्वारा पीपल के पेड़ को सींचने का पुराना रिवाज है ! ऐसा माना जाता है कि पीपल सींचने से मन-वांछित फल मिलता है! श्रीगरवाजी महाराज ने कहा कि शकुन अच्छा मिला है , उन्होंने उस कन्या का नाम पूछा तो उसने अपना नाम बावतकुमारी बताया! उसके सिर पर घड़ा था और घड़े को कुंभ कहा जाता है, कुंभ और उस कन्या के नाम को साथ मिलाकर नई जाति कुंबावत क्षत्रिय बनी थी ! कुंबावत क्षत्रिय जाति जिस दिन बनी उस दिन संवत 1316 तेरह सौ सौलह वैशाख सुद 9 नवमी शनिवार स्थान जैसलमेर- राजपूताना था ! जैसलमेर के तत्कालीन राजा केहर (द्वितीय) भाटी राजपूत थे ! कुंबावत जाति राजपूतों से अलग बनने के बाद श्रीगरवाजी महाराज ने कुंबावतों को निर्देश दिया कि आज के बाद आप राजपूतों को साख नहीं देंगे और न ही उनसे साख लेंगे अर्थात कुंबावत और राजपूत आपस में विवाह नहीं करेंगे! कुंबावत के विवाह कुंबावत गौत्र में ही होंगे!

जाति-नामकरण के दिन 50 गौत्र और बने । इस प्रकार कुल 9 राजपूती जातियों से 12+50=62 गौत्र बने थे जो कि इस प्रकार है —

भाटी राजपूतों से –बोरावड़, मंगलराव, पोहड़ ‘पोड़’, लीमा या लांबा, खुडिया, भाटिया, माहर, नोखवाल, भीड़ानिया, सोंकल, डाल, तलफीयाड़, भाटीवाल, आईतान, जटेवाल, मोर, मंगलौड़ !चौहान राजपूतों से – टाक, बग , सुंवाल, सारड़ीवाल, गूरिया, माल , घोड़ेला , सिंघाटिया, निम्बीवाल, छापरवाल, सिरस्वा, कुकड़वाल, भरिया , कलवासना, खरनालिया ! पड़िहार राजपूतों से- मेरथा, चांदोरा, गम , गोहल , गंगपारिया, मांगर, धुतिया ! राठौड़ राजपूतों से -चाडा, रावड़, जालप, कीता, कालोड़ , दांतलेचा, पगाला, सुथोढ ! पंवार राजपूतों से- लकेसर , छापोला , जाकड़ा , रसीयड़, दुगट, पेसवा, आरोड़, किरोड़ीवाल ! तंवर राजपूतों से- गेदर , सावल , कलसिया ! गोहल राजपूत से- सुडा! सिसोदिया राजपूतों से- ओस्तवाल , कुचेरिया ! दैया राजपूत से- दैया या दहिया !

संत श्रीगरवाजी महाराज के संसार पक्ष में चार और भाई थे जो कि भाटी राजपूत से कुंबावत बने थे !इनके बोरावढजी नाम के पूर्वज थे, उनके नाम से ही इन्होंने अपना गौत्र बोरावड़ रख लिया !नए बने कुंबावतों ने अपने नाम से, पिता के नाम से, दादा के नाम से, पड़दादा के नाम से ज्यादातर गौत्रों के नाम रखे थे! राजपूतों से कुंबावत ‘कुंभावत’ जाति अस्तित्व में आने के बाद इनकी वंशावली लिखने के लिए अलग राव की आवश्यकता पड़ी तो संत श्रीगरवाजी महाराज ने भाटी राजपूतों एवं चौहान राजपूतों को जांचने वाले, वंशावली लिखने वाले राव चण्डीसा भदाजी व भोपाल जी को बुलवाकर कुंबावतों के उक्त 62 गोत्रों वाले के लिए राव नियुक्त किए थे! वर्तमान में इन रावों के वंशज गांव लांबिया, तहसील- जैतारण ,जिला -पाली, राजस्थान में बसते हैं और इनके पास कुंबावतों की वंशावली की जूनी पोथियां, बहियां उपलब्ध हैं!

नई बनी कुंबावत जाति के लोगों ने अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए किसी ने खेती का कार्य किया, किसी ने व्यापार किया ,किसी ने भवन निर्माण का काम सीखा, किसी ने परंपरागत कुम्हारों से मिट्टी के बर्तन बनाने का काम सीखा ! जिन्होंने मिट्टी के बर्तन बनाने का पेशा अपनाया उनको कालांतर में दूसरी जातियों के लोग कुम्हार ही कहने लगे! मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुमावतों एवं परंपरागत कुम्हारों को अलग-अलग समझने के लिए परंपरागत कुम्हारों को बाण्डा कुम्हार कहने लगे और मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुमावतों को मारू कुंबार कहने लगे ! बाण्डा कुम्हार के लिए बाण्डा शब्द अपनाने का कारण यह माना जाता है कि परंपरागत कुम्हार कुछ विशेष अवसरों एवं होली जैसे त्यौहार पर मुंह पर कालिख पोत कर गधे की सवारी करते एवं नग्न होकर नाचते और अपशब्द गालियां बोलते थे इसलिए उनको बाण्डा कुम्हार कहने लगे! समय के साथ परंपरागत कुम्हार जाति के लोग भी अच्छे शिक्षित हुए और ऊंचे सरकारी पदों पर आसीन हुए हैं ! पूराने रिवाज छोड़ते गए! परंपरागत कुम्हार युगों पूरानी जाति है और ये राजा दक्ष प्रजापति के वंशज माने जाते है। इनकी कुलदेवी श्रीयादे माता है ।

कुंबावत, कुंभावत , कुमावत जाति बने हुए अभी 763 वां वर्ष चल रहा है और इनकी कुलदेवी की जानकारी नीचे दे रहा हूँ।

उक्त 62 गौत्रों के अलावा जो गौत्र और बने वह इस प्रकार हैं- खुवाल, कारगवाल , करड़वाल , केरीवाल , कंसुबीवाल , कुलचानिया , नेनेचा, भेड़वाल , लूणवाल , माचीवाल , भोड़ीवाल, सिमार, रोकण, बेनीवाल , भीवाल, धुम्बीवाल, चीन , सीहोटा, सरेलिया, घासोलिया , गोला , जलंधरा , सुवटा , हाड़ोतिया, चकरेनिया, तेरपुरा, दादरवाल , पेंसिया , ढूंढाड़ा, मलाटिया, बासनीवाल , अड़ावलिया, बम्बरवाल, भोभरिया , खटोड़ , धुराण , जायलवाल , जलवानिया , रोपिया , लूंड , जींजनोदिया, फतेपुरा , बागरी , मोरवाल , लोणीवाल, नराणिया , दुबलदिया, बालोदिया , बाकरेचा , मालवीया, बागेरिया, लाडूना, घण्टेलवाल , खाटीवाल, डहीया, खरस, उबा, नागा , मंडोरा , इटारा , भड़भूडा, घेउवा , सांगर , मगरानिया , बेरीवाल , धूमानिया, बोरीवाल , नांदीवाल या नानीवाल, पांथड़िया , गुगान , बीरथलिया, नेनरवाल, बांथड़िया, बरबरिया , मुंडवा , धनारिया , रोटागन, गुगाण, धुवारिया , आणिया, देतवाल, सुथोड़, कुदाल , बलगंध, सकंदरका , राजोरिया , रतीवाल, सीधल , कुण्डलवाल , रठौड़, सोलंकीटाक, सोहल , खरेसिया, मणधणीया, मारवाल , केहुआ , मावर, होदकासिया , तूनवाल , मारोठिया , सारोठिया, लुहाणीवाल आदि । इसके बाद भी कई गौत्र बनते गए ।

नोट : उक्त गौत्रों के उच्चारण पुस्तक की प्रिंटिंग मिस्टेक के कारण कुछ भिन्न हो सकते हैं ।

कुंबावत , कुंभावत , कुमावत जो शब्द आज प्रचलन में है इस जाति के लोग वर्तमान युग में भी संगठित नहीं है । और इनके इतिहास आदि की ज्यादातर जानकारी इनको नहीं है इसी कारण इस जाति के लोग आज मारू – कुंबार , बागड़ी -कुंबार,देशवाली-कुंबार, चेजारा, चूनपटिया, सिलावट, खेतीखड़- कुंबार, पटेल वीरराजपूत, मारू- राजपूत, कुम्हार आदि नामों से पहचाने जाते हैं।

राजपूतों की जो कुलदेवियां है वह ही कुंबावतों की कुलदेवियां हैं क्योंकि राजपूतों से ही कुंबावत या कुमावत बने थे। राजपूत जातियों की कुलदेवियां इस प्रकार है- भाटी राजपूत चंद्रवंशी, कुलदेवी- बिरमानी माता, बिजासनिया माता , आईनाथ माता एवं सायंगा या स्वांगिया माता । चौहान राजपूत अग्निवंशी, कुलदेवी- आशापुरा माता। पवार राजपूत अग्निवंशी , कुलदेवी – कालका माता , संचियाय माता , बाकल माता । पड़िहार राजपूत अग्निवंश, कुलदेवी- चावंढा माता या चामुंडा माता । राठौड़ राजपूत सूर्यवंशी, कुलदेवी- राठेशरी माता, पंखनी माता। तंवर राजपूत यदुवंशी, कुलदेवी- शंकरराय माता। सिसोदिया राजपूत सूर्यवंशी, कुलदेवी- बाण माता , अंबा माता ।

ज्यादातर कुल देवियों के मंदिर पश्चिम राजस्थान के बाड़मेर ,जालौर ,सिरोही ,जैसलमेर, जोधपुर ,पाली ,बीकानेर आदि जिलों में बहुतायत से अलग-अलग नामों से हैं । अपनी कुलदेवी की पूजा उपासना हर जाति के लोगों को जरूर करनी चाहिए। अपने-अपने गौत्रों के अनुसार कुलदेवी की सही जानकारी वंशावली लिखने वाले राव की जूनी पोथी बहियों से मिल सकती है।

नारी को सम्मान दिलाने वाले, समाज-सुधारक, कुंभावत , कुमावत जाति को अस्तित्व में लाने वाले कुलगुरु , संत-शिरोमणि श्री गरवाजी महाराज ने जीवित समाधि संवत 1332 आषाढ़ वदी नवमी को जैसलमेर में लोदरवा नामक स्थान पर ली थी । अगर कोई कुंबावत उनकी समाधि पर धोक देने का मन रखता है तो जैसलमेर निवासी बोरावड़ गौत्र के कुंबावतों से समाधि स्थल की जानकारी ली जा सकती है। समाधि-स्थल जैसलमेर रेलवे स्टेशन से लगभग 11 km दूर है ।

उपरोक्त पूरा मैटर मैंने आज के युवाओं की जानकारी के लिए स्वयं टाइप किया है उम्मीद है कुंबावत ,कुमावत जाति के इतिहास एवं कुलदेवी के बारे में उनकी जिज्ञासा अंशतः पूर्ण होगी। युवाओं के लिए मैंने प्रयास किया है यदि आपको पसंद आए तो सोशल मीडिया ,व्हाट्सएप के माध्यम से अपने स्वजातीय बंधुओं में यह जानकारी जरुर शेयर करें। ———————————————————————————————————–

मैं सन 1966 में पहली बार स्कूल पढ़ने गया तो क्लास टीचर ने मेरा नाम और जाति पूछी । उपस्थित अन्य बच्चों में से किसी ने मेरी जाति कुम्हार बोल दी टीचर ने मेरे नाम के आगे जाति प्रजापत लिख दी । उस जमाने में एडमिशन के वक्त जन्म कुंडली या बर्थ सर्टिफिकेट नहीं मांगी जाती थी प्रायः बच्चे की जन्म तिथि टीचर अपने विवेक से लिखता था। कुंबावत जाति होने के बावजूद भी मेरे गृह जिले चूरु, राजस्थान के लोग अपनी जाति प्रजापत लिखते हैं और अपनी संस्थाओं के नाम प्रजापति भवन आदि रखते हैं। मेरा मानना है कि यह अपनी जाति के इतिहास की जानकारी नहीं होने के कारण शायद ऐसा होता होगा।

कुमावतों और कुम्हारों को आज के युग में संगठित होना होगा क्योंकि यह जातियां OBC आरक्षण के दायरे में आती है देखा यह जा रहा है कि कुछ संपन्न बहुसंख्यक और राजनीतिक पहुंच वाली जातियां OBC में शामिल कर लिए जाने के बाद पुरानी शामिल जातियों को आरक्षण का लाभ मिलना बहुत कम हो गया है।

मैंने एक बार अखबार में पढ़ा था कि राजस्थान में सीकर, फुलेरा, कुचामण , शिव और जालौर बाड़मेर जिले की एक दो विधानसभा सीट कुम्हार बहूल है, लेकिन संगठन के अभाव में इन सीटों पर विधायक प्रायः दूसरी जातियों के निर्वाचित होते हैं । हमें राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने के लिए संगठित और जागरूक होना होगा । आज का युग इंटरनेट का है और कुमावत और कुम्हार वर्ग के युवाओं को इसका इस्तेमाल कर अपने हक के लिए जागृत होना होगा । देश में अभी जाति आधारित जनगणना की मांग उठ रही है जो कि बहुत जरूरी लगती है ।जाति आधारित जनगणना होने पर विभिन्न जातियां अपनी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण की मांग करेगी तभी उनके हक का पूरा हिस्सा उन्हें मिल सकेगा।

मैंने सब्जेक्ट से अलग कुछ लिख दिया है किसी पाठक को ऐतराज हो तो क्षमा प्रार्थी हूं

Nagraj Maahar , Chennai (TN)

19-09-2021

6 Comments

  1. Mahavir kumawat says:

    मतलब कुमावत कुंमार प्रजापत प्रजापति सब एक ही हे…?

    • Admin says:

      प्रजापत, प्रजापति एक है। कुंभावत और मारु कुमार एक है

  2. sunil naik says:

    Hanuman dhan chandisa rao ka mobile number address chayhiye
    My number whatts 9890011112

    • Admin says:

      हनुमान दान चण्डीसा का स्वर्गवास हो चूका है, उनके परिवार में उनकी बेटी है लाम्बिया गाँव मे। उनके परिवार का मेरे पास कोई कांटेक्ट नंबर नहीं है
      Admin recently posted..Kumawat kshatriya jaati ke maahar gautra ka itihaas aur kuldeviMy Profile

  3. Sunil kumavat says:

    Hanuman dhan chandisa ka number chaiya

    • Admin says:

      हनुमान दान चण्डीसा का स्वर्गवास हो चूका है, उनके परिवार में उनकी बेटी है लाम्बिया गाँव मे। उनके परिवार का मेरे पास कोई कांटेक्ट नंबर नहीं है

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